कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 11 प्रेमचन्द की कहानियाँ 11प्रेमचंद
|
1 पाठकों को प्रिय 113 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का ग्यारहवाँ भाग
प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन में सम्मिलित की गईं है। यह इस श्रंखला का ग्यारहवाँ भाग है।
अनुक्रम
1. गुरु-मंत्र
2. गुल्ली-डंडा
3. गृह-दाह
4. गृह-नीति
5. ग़ैरत की कटार
6. घमंड का पुतला
7. घरजमाई
1. गुरु-मंत्र
घर के कलह और निमंत्रणों के अभाव से पंडित चिंतामणिजी के चित्त में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने संन्यास ले लिया तो उनके परम मित्र पंडित मोटेराम शास्त्रीजी ने उपदेश दिया- मित्र, हमारा अच्छे-अच्छे साधु-महात्माओं से सत्संग रहा है। यह जब किसी भलेमानस के द्वार पर जाते हैं, तो गिड़गिड़ाकर हाथ नहीं फैलाते और झूठ-मूठ आशीर्वाद नहीं देने लगते कि 'नारायण तुम्हारा चोला मस्त रखे, तुम सदा सुखी रहो।' यह तो भिखारियों का दस्तूर है। सन्त लोग द्वार पर जाते ही कड़ककर हाँक लगाते हैं, जिससे घर के लोग चौंक पड़ें और उत्सुक होकर द्वार की ओर दौड़ें। मुझे दो-चार वाणियाँ मालूम हैं, जो चाहे ग्रहण कर लो। गुदड़ी बाबा कहा करते थे- 'मरें तो पाँचों मरें।' यह ललकार सुनते ही लोग उनके पैरों पर गिर पड़ते थे। सिद्ध बाबा की हाँक बहुत उत्तम थी- 'खाओ, पीओ, चैन करो, पहनो गहना, पर बाबाजी के सोटे से डरते रहना।' नंगा बाबा कहा करते थे- 'दे तो दे, नहीं दिला दे, खिला दे, पिला दे, सुला दे।' यह समझ लो कि तुम्हारा आदर-सत्कार बहुत कुछ तुम्हारी हाँक के ऊपर है। और क्या कहूँ। भूलना मत। हम और तुम बहुत दिनों साथ रहे, सैकड़ों भोज साथ खाये। जिस नेवते में हम और तुम दोनों पहुँचते थे, तो लाग-डाँट से एक-दो पत्तल और उड़ा ले जाते थे। तुम्हारे बिना अब मेरा रंग न जमेगा, ईश्वर तुम्हें सदा सुगंधित वस्तु दिखाये।
चिंतामणि को इन वाणियों में एक भी पसंद न आयी। बोले- मेरे लिए कोई वाणी सोचो।
मोटेराम- अच्छा यह वाणी कैसी है कि, 'न दोगे तो हम चढ़ बैठेंगे।'
चिंतामणि- हाँ, यह मुझे पसंद है। तुम्हारी आज्ञा हो तो इसमें काट-छाँट करूँ।
मोटेराम- हाँ, हाँ, करो।
चिंता.- अच्छा, तो इसे इस भाँति रखो- न देगा तो हम चढ़ बैठेंगे।
मोटेराम- (उछलकर) नारायण जानता है, यह वाणी अपने रंग में निराली है। भक्ति ने तुम्हारी बुद्धि को चमका दिया है। भला एक बार ललकारकर कहो तो देखें कैसे कहते हो।
चिंतामणि ने दोनों कान उँगलियों से बन्द कर लिये और अपनी पूरी शक्ति से चिल्लाकर बोले- न देगा तो चढ़ बैठूँगा। यह नाद ऐसा आकाशभेदी था कि मोटेराम भी सहसा चौंक पड़े। चमगादड़ घबराकर वृक्षों से उड़ गये, कुत्ते भूँकने लगे।
|